हिन्दी में लघुकथाएं एक विधा के रूप में प्रतिष्ठित हैं । कहानी को संक्षिप्त करके लिखी गई कहानी के लघु रुप को लघुकथा कहा गया है । लघुकथा का जन्म हितोपतेश पंचतंत्र से माना जाता है । हिन्दी के आरंभिक काल से इसका स्वरुप पं. माधव सप्रे का “एक टोकरी भर मिट्टी” एवं श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी की “झलमला” कहानी में मिलता है। हिन्दी में लघुकथा वरिष्ठ साहित्यकारों ने सृजित किया है । मेरी लघुकथाएं राष्ट्रीय स्तर के संकलनों में प्रकाशित हो चुकी हैं “रंग झांझर” लघुकथा संग्रह मेरा प्रथम संग्रह है । मेरी आठ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं यथा सतनाम के अनुयायी, सतनाम की दार्शनिक पृष्ठभूमि, मितान (कहानी संग्रह-छत्तीसगढ़ी), नगमत (कहानी संग्रह-हिन्दी), उढ़रिया (उपन्यास-छत्तीसगढ़ी), पछतावा(हिंदी), बबुल की छाँव(काव्य संग्रह-हिंदी), मोगरा के फूल (छत्तीसगढ़ी) एवं एक कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन है ।
“रंग झांझर” लघुकथा संग्रह में बीस लघुकथाएं है जो कि विभिन्न भावों को प्रकट करती हैं । इसके माध्यम से समाज से समाज की रुढ़िवादी व्यवस्था को चोट की गई है। संग्रह की भूमिका लेखन का कार्य आदरणीय डॉ. विनय कुमार पाठक ने किया है । पाठक जी देश के जाने माने भाषाविद हैं । इससे लघु कधा संग्रह की महत्ता बढ़ गई है । मैं श्री पाठक जी का ह्रदय से आभारी हूँ । लघु कथा संग्रह से विद्वत जन एवं पाठकों को कुछ दे सका तो मेरी सफलता होगी । सहयोग की अपेक्षा के साथ।
“रंग झांझर” लघुकथा संग्रह में बीस लघुकथाएं है जो कि विभिन्न भावों को प्रकट करती हैं । इसके माध्यम से समाज से समाज की रुढ़िवादी व्यवस्था को चोट की गई है। संग्रह की भूमिका लेखन का कार्य आदरणीय डॉ. विनय कुमार पाठक ने किया है । पाठक जी देश के जाने माने भाषाविद हैं । इससे लघु कधा संग्रह की महत्ता बढ़ गई है । मैं श्री पाठक जी का ह्रदय से आभारी हूँ । लघु कथा संग्रह से विद्वत जन एवं पाठकों को कुछ दे सका तो मेरी सफलता होगी । सहयोग की अपेक्षा के साथ।
इस कृति को अंतरजाल पर प्रतिष्ठित करने के लिए मैं तकनीकी परिश्रम करने वाले श्री जयप्रकाश मानस एवं मित्रवत् व्यवहार के धनी- वैभव प्रकाशन के प्रमुख-डॉ.सुधीर शर्मा, श्री गिरीश पंकज, श्री संतोष रंजन, श्री राम पटवा आदि का तहेदिले से आभार प्रकट करता हूँ ।
डॉ.जे.आर.सोनी
10 अक्टूबर, 2006
रायपुर, छत्तीसगढ़