Saturday, September 09, 2006

अपनी बात

हिन्दी में लघुकथाएं एक विधा के रूप में प्रतिष्ठित हैं । कहानी को संक्षिप्त करके लिखी गई कहानी के लघु रुप को लघुकथा कहा गया है । लघुकथा का जन्म हितोपतेश पंचतंत्र से माना जाता है । हिन्दी के आरंभिक काल से इसका स्वरुप पं. माधव सप्रे का “एक टोकरी भर मिट्टी” एवं श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी की “झलमला” कहानी में मिलता है। हिन्दी में लघुकथा वरिष्ठ साहित्यकारों ने सृजित किया है । मेरी लघुकथाएं राष्ट्रीय स्तर के संकलनों में प्रकाशित हो चुकी हैं “रंग झांझर” लघुकथा संग्रह मेरा प्रथम संग्रह है । मेरी आठ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं यथा सतनाम के अनुयायी, सतनाम की दार्शनिक पृष्ठभूमि, मितान (कहानी संग्रह-छत्तीसगढ़ी), नगमत (कहानी संग्रह-हिन्दी), उढ़रिया (उपन्यास-छत्तीसगढ़ी), पछतावा(हिंदी), बबुल की छाँव(काव्य संग्रह-हिंदी), मोगरा के फूल (छत्तीसगढ़ी) एवं एक कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन है ।

“रंग झांझर” लघुकथा संग्रह में बीस लघुकथाएं है जो कि विभिन्न भावों को प्रकट करती हैं । इसके माध्यम से समाज से समाज की रुढ़िवादी व्यवस्था को चोट की गई है। संग्रह की भूमिका लेखन का कार्य आदरणीय डॉ. विनय कुमार पाठक ने किया है । पाठक जी देश के जाने माने भाषाविद हैं । इससे लघु कधा संग्रह की महत्ता बढ़ गई है । मैं श्री पाठक जी का ह्रदय से आभारी हूँ । लघु कथा संग्रह से विद्वत जन एवं पाठकों को कुछ दे सका तो मेरी सफलता होगी । सहयोग की अपेक्षा के साथ।
इस कृति को अंतरजाल पर प्रतिष्ठित करने के लिए मैं तकनीकी परिश्रम करने वाले श्री जयप्रकाश मानस एवं मित्रवत् व्यवहार के धनी- वैभव प्रकाशन के प्रमुख-डॉ.सुधीर शर्मा, श्री गिरीश पंकज, श्री संतोष रंजन, श्री राम पटवा आदि का तहेदिले से आभार प्रकट करता हूँ ।

डॉ.जे.आर.सोनी
10 अक्टूबर, 2006
रायपुर, छत्तीसगढ़

परमाणु-बतौर लघुकथाएँ

डॉ.जे.आर.सोनी अखिल भारतीय स्तर की लघुकथा संकलनों में समादृत होकर अपनी पहचान बना चुके हैं । उनकी बीस लघुकथा का संग्रह “रंग झांझर” प्रस्तुत है । हिंदी के पाठकों के लिए यह शब्द अमानक भले हो लेकिन छत्तीसगढ़ी भाषा-भाषियों के लिए यह शब्द उनकी संस्कृति का अंग है । एक लघुकथा भी इस शीर्षक पर आधारित है । जिसे पढ़ने से शीर्षक की रहस्यमयता का आभास हो जाता है । छत्तीसगढ़ की संस्कृति और लोक जीवन का व्यापक प्रभाव डॉ.सोनी पर पड़ा है, अतः उक्त लघुकथा का ऐसा शीर्षक देना उनकी विवशता नहीं, विशिष्टता का संयोजन है ।

प्रस्तुत संग्रह में बीस लघुकथाएँ संकलित हैं जो विविध विषयों, भावों, विचारों, घटनाओं, प्रसंगों की पृष्ठभूमि में परमाणु-बतौर प्रतिष्ठित हैं । आज समय और क्षण के महत्व की दृष्टि से कथाओं का जो महत्व है, उससे संस्कारी पाठक सुपरिचित है । समयसासयिक होते हुए भी ये रचनाएँ कुछ सोचने-विचारने के लिए बाध्य करती हैं, युग का प्रतिनिधित्व करती हैं, आधुनिकता का आंकलन करती हैं ।

हिंदी में लघुकथाएँ साठोत्तर स्थलियों और समकालीन परिस्थितियों से उद्भुत एक घारा है जो युगीन संदर्भों और आधुनिक बोधों से व्युत्पन्न कथा के अनावश्यक विस्तार, अनपेक्षित तत्व-रुपों के प्रसार की प्रतिक्रिया-स्वरुप न केवल प्रस्तुत हुई वरन् अपने वैशिष्ट्य को अंगीकार करती हुई तथा विपरीतता-विद्रूपता,संक्षिप्तता रहस्यात्मकता,आंचलिकता, समसामयिकता, आधुनिकता के संषलिष्ट प्रमाण के कारण प्रतिष्ठित भी हुई ।

लघुकथाओं का बीज भले ही पंचतंत्र व हितोपदेश की कथाओं में देखा जाए लेकिन हिंदी के आरंभिक काल में इसका स्वरुप माधवराव सप्रे का “एक टोकरी भर मिट्टी” या बख्शी जी की “झलमला” कहानी में निहारा-परखा जा सकता है । जिस छत्तीसगढ़ प्रदेश में हिंदी लघुकथाएँ जनमीं वही से डॉ.जे.आर.सोनी का यह संग्रह ‘रंग-झांझर’ से उद्घाटित हुआ है । यद्यपि साठ के दशक के बाद लघुकथाओं के नये रुप में पाठक परिचित होने लगे थे तथापि इसके विधा के रुप में स्थापन बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशकों की देन है, यह स्पष्ट है । इन लघुकथाओं का आदि रुप लोककथाओं में मिलता है अतः संस्कार के रुप में संस्थित इस कच्चे माल को पक्का माल बनाकर भी हिन्दी लघुकथा समृध्दि पा सकती है यह संकेत भी लघुकथाओ के लिए अपेक्षित होगा । “रंग झांझर” अपनी बहुरंगी छवि से पाठकों के यदि कुछ दे सका तो उसकी यह अतिरिक्त उपलब्धि होगी । शुभकामनाओं सहित-


डॉ.विनय कुमार पाठक
14सितम्बर 2002
निदेशक,
प्रयास प्रकाशन
जे-62,अज्ञेय नगर,बिलासपुर


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चुनरी बनी तलवार


रविवार का दिन था। कमला अपने मामा के घर से दुर्ग रेल्वे स्टेशन पारा घुमने जा रही थी। कक्षा आठवीं की छात्र । उम्र चौदह वर्ष । अपने माता-पिता की अकेली संतान थी। वह अपनी सहेली राधा के साथ भिलाई सेक्टर-6से टेम्पो में पहिए के पास एक किनारे में बैठ गई । टेम्पो खचाखच भर गया था। भिलाई से दुर्ग रास्ते पर टेम्पो वाला रूक-रूककर सवारी उतारते-चढ़ाते जा रहा था। कमला अपनी सफेद रंग की नई चुनरी गले में लपेट रखी थी । वह अब राधा के संग बातों में मशगुल थी । टैम्पो तेज गति से दौड़ रही थी। चुनरी हवा में लहराते हुए पहिए में धीरे-धीरे फंसती चली जा रही थी जिसका कमला को भान नहीं थी। टैम्पो जैसे ही रेल्वे क्रासिंग पार किया कि कमला का गर्दन धड़ से अलग हो गया जैसे किसी ने तलवार काट डाला हो । शरीर से खून की फव्वारे फूट रहे थे । एकाएक इस हादसे से अन्य यात्रियों को कुछ समझ नहीं आया कि किसने खून किया ? टैम्पो किनारे जाकर खड़ी हो गई । ड्रायव्हर ने माथा पकड़ लिया कि यह क्या लफड़ा हो गया । सभी यात्रियों ने पास आकर देखा तो कमला गर्दन में जो चुनरी लपेटे थी वह चक्के में फंसी हुई थी। टेम्पो के रफ़्तार से एक ही झटके में चुनरी से गर्दन अलग हो गया था ।

माता-पिता की लाड़ली बिटिया विवाह से पहले बिदा हो गई । सभी मुहल्ले व नगरवासियों ने नम आँखों से कमला की अंतिम संस्कार कर पंचतत्व में विलीन कर बिदा कर दिया । कमला को क्या पता कि जिस चुनरी को बड़े शान से लपेट कर जा रही थी, वही एक दिन तलवार बनकर जान ले लेगी ।
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प्रस्तुतिः सृजन-सम्मान, छत्तीसगढ़


कंजूसी का कड़वा फल


प्रतिदिन की तरह आज भी संतोष कुमार “साधी बिजली की दुकान पर गोल बाजार” में बैठा रहा। वह अपने लड़कों को बिजनेश की गुर सिखाता रहा। बच्चे हाँ में सिर हिला रहे थे। दुकान की साख अच्छी जम गई थी। सांधी जी को डिप्टी कलेक्टरी से सेवानिवृत्त हुये पाँच वर्ष बीत चुके थे। वे इधऱ-उधऱ गप मारकर दिन बिताते थे। साधी जी जीवन भर मुफ्त का माल उड़ाते रहे । सेवानवृत्ति के बाद भी लुफ्त उठाते रहते थे । कभी किसी अधिकारी को फोन करके जीप गाड़ी मंगा लेते थे। अपनी ख़ुद की मारूति कार घर पर ही थी।
संध्या सात बजे सांधी जी अपने पुत्र सत्यप्रकाश को स्कूटर से घर छोड़ने को कहा । जब गांधी रोड के पास पहुँचे ही थे स्कूटर का एक टायर पंचर हो गया । सांधी जी वहीं खड़े होकर कोई पहचान गाड़ी वालों को देखने लगे उस दिन कोई नहीं मिले । उसी समय रामकृष्ण शर्मा, लूना से अपने घर दर्पण कालोनी जा रहे थे । सांधी जी ने आवाज दी शर्मा जी रुक गए ।

सांधी जी ने कहा हमें भी घर तक छोड़ दो । शर्मा जी ने मना किया कि लूना नहीं खींच पाएगा। सांधी जी ने पैसा बचाने के लिए लूना के पीछे में बैठ गया । भारी भरकम शरीर होने के कारण लूना ऊपर उठ जाती थी। शर्मा जी धीरे-धीरे चले रहे थे । रामकृष्ण मंदिर के पास गति अवरोधक को पार करने के लिए जैसे ही लूना को चढ़ाया, रोड ब्रेकर ऊँचा होने के कारण लूना के पहिया ऊपर उठ गया और पीछे बैठे सांधी जी धड़ाम से गिर पड़े । पैर टूट गया। शर्मा जी ने सांधी जी को उठाया । पैर के दर्द से कराह रहे थे । शर्मा जी पुनः लूना में बिठाकर घर छोड़कर चला गया । सांधी जी के पैर में सूजन आ गया। पत्नी सावित्री ने तपाक से कहा । अच्छा हुआ बहुत कंजूसी करते हो । दस रुपए आटो खर्च बचाने के लिए पैर तुड़वा आए अब पांच हजार रुए खर्च करो । सांधी जी के कंजूसी ने पांच माह तक बिस्तर पर पड़े रहने को पजबूर किया पैर अभी भी ठीक नहीं हुआ है । उपर से पत्नी सावित्री उन्हें कोसती रहती हैं, सो अलग ।
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प्रस्तुतिः सृजन-सम्मान, छत्तीसगढ़


मोहल्ला समिति


गाँव एवं नगर के मोहल्ले में नागरिक एक विकास समिति का गठन कर लेते हैं। पाँच पड़ोसी मिलकर समिति बना लेते हैं । रामकृष्ण पाण्डे स्वयं समिति का अध्यक्ष मानकर नेतागिरी करने लगते हैं । मुह्ल्ले के दस आदमी लेकर वही किसी के घर वैठकर सड़क, सड़क, नाली, डामरीकरण के प्रस्ताव पारित करते हैं । स्थानीय पार्षद, विधायक, सांसद निधि से राशि की मांग करते हैं । विधायक, सांसद महोदय मुह्ल्ले में आकर माला पहनकर सम्मान कराते हैं । डामरीकरण एवं नाली बनाने के लिये सांसद दो लाख रुपये एवं विधायक पाचास हजार देने की घोषणा करते हैं। रामकृष्ण पांडे वे साथी जय-जय कार करते हैं। रामकृष्ण पांडे चाय नाश्ते कराकर सांसद, विधायक को विदा करते हैं। रामकृष्ण सांसद ,विधायक के आने से एवं राशि स्वीकृत कराने से मोहल्ला में धाक जम जाती है। कोई भी काम हो पांडे जी ती फटे एड़ी में टांग अड़ाते रहते हैं।

रामकृष्ण पांडे ने सोचा क्यों न समिति का पंजीयन करा लिया जावें । ओम प्रकाश पाठक ने बताया कि अध्यक्ष महोदय इस मोहल्ले में पहले से समिति (पंजीयन) हैं जिसके अध्यक्ष रमेशचन्द्र खरे हैं। समिति में तय हुआ है कि खरे को हटाया जावे । नया चुनाव कराया जावे रामकृष्ण पांडे ने बीस सदस्यों की सदस्यता राशि खरे को दी। खरे ने स्पष्ट रूप से मना कर दिया कि मैं सदस्य नहीं बनाऊंगा क्योंकि आप लोग मुझे पद से हटाना चाहते हैं। कई बार रामकृष्ण व साथी ने अनुनय विनय किया । परन्तु खरे ने खरा-खरा कह दिया कि मैं आप लोगों को सदस्य नहीं बनाऊंगा । अपनी राशि ले जाओ रामकृष्ण पांडे स्वयं अध्यक्ष ने सभी मोहल्ले वासियों के सामने घोषणा किया कि निकम्मे अध्यक्ष को हटाया जाता है और आज से मैं स्वयं अध्यक्ष बन गया हूँ । जो भी समस्या और लोगों का है मैं निराकरण कराने का प्रयास करूँगा । रमेशचंद्र खरे ने कहा-सभी निर्णय कोर्ट में होगा । आप कोर्ट जाइये रामकृष्ण पांडे छोटा मुँह लिये न्यायालय की ओर चल दिये ।
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प्रस्तुतिः सृजन-सम्मान, छत्तीसगढ़


बंटवारा


जब कभी घर आंगन का बंटवारा होता है तो दो भाइयों के दिलों का बंटवारा भी हो जाता है। धन संपत्ति माता-पिता, भूमि, पेड़-पौधों, घर-द्वार, खलिहान, आंगन के दो टुकड़े और बीच में बने चूल्हे के भी दो टुकड़े हो जाते हैं । उस दिन नये चूल्हा बनाना पड़ता है इसलिये घर में भोजन नही बन पाता दिनभर भूखे पूरे परिवार को रहना पड़ता है राम एवं श्याम को भुगतना पड़ा । मान- सम्मान का बंटवारा होने से राम को बहुत मानसिक पीड़ा हुई।
तिरपन साल पहले पाकिस्तान भारत से अलग होकर नया देश बना था। राम के पिता भीष्मशाह ने दुख बहुत सहा था । भोपाल को अपना निवास बना लिये थे। परन्तु भाई बंटवारा से मन उदास-उदास रहता । श्यामशाह ने राजनीतिक पहुँच का फायदा उठाकर रामशाह का तबादला नये छत्तीसगढ़ राज्य के बंटवारे में करा दिया। रामशाह खुशी-शुशी तबादल में छत्तीसगढ़ चला गया। रामशाह को पिता जी के बताये भारत पाकिस्तान के के बंटवारे की याद हो आयी । गाँव के जमींदार बड़े रोबदार परिवार थे। यहाँ शरणार्थी बन गये थे। सरकार के रहमों करम पर जी रहे थे। पिताजी ने बड़े परिश्रम करके का धंधा शुरू किये थे। बड़े सफल रहे। हम भाई बहनों को पढ़ाया लिखाया, शादी विवाह किया और नौकरी पर लगाया । आज फिर राज्य के बंटवारे में हम दो भाई मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में बंट गये हैं । चूल्हे के दो टुकड़े होने से बच गये । ऐसे मानसिक आघात लाखों परिवारों को झेलना पड़ रहा है।
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प्रस्तुतिः सृजन-सम्मान, छत्तीसगढ़


अंतिम इच्छा


प्रेम प्रकाश शर्मा जी प्रथम श्रेणी अधिकारी ग्वालियर के मोती महल में पदस्थ थे । सेवा निवृत्त के लिये चार वर्ष बाकी थे। दो वर्ष सरकार के मर्सी पर बढ़ गया था । शर्मा जी अपने काम ईमानदारी, लगन, मेहनत से समय से पूर्व कर देते थे। टेबल में कोई कागज नहीं रखते थे। जैसे चपरासी रामदीन टेबव में नस्तियों को रखता दस मिलट में सभी फाइलों का निराकरण कर देता था। शर्मा जी बत्तीस साल सेवा कर चुके थे। शे ष सेवा को अच्छे ढंग से बीत जाये यही प्रार्थना ईश्वर से करते हैं ।
शर्मा जी को मधुमेह की रोग हो गया था। समय ते अनुसार भोजन नाश्ता करते थे । खाना खाने से पूर्व नियमित रूप से गोलियाँ का सेवन तरते थे । प्रेम प्रकाश की पत्नी सुमित्र बहुत सेवा करती थी। बड़ी भली महिला थी। बच्चों की विवाह कर मातृ पितृ ऋण से मुक्त हो गये थे । शर्मा जी को बीमारी ने उम्र से पहले वृद्ध बना दिये थे। प्रातः सुबह उठकर पाँच मील पैदल चलते थे। इसलिये राजरोग अटेक नहीं कर पाते थे। सुमित्र प्रतिदिन टेबलेट खाने के लिये ध्यान रखती थी।

एक दिन शर्मा जी के राजरोग में थोड़ी सी वृद्धि हो गई । आफिस वे 6 बजे हांफते हुये आये। सुमित्र ने देखकर कहाँ क्या हो गया । जल्दी से प्रीज से एक बोतल ठंडा पानी निकालकर गिलास में दी एक सांस में पानी पी गया। शर्मा जी की पत्नी सुमित्रा से कहा कि मैं ज्यादा दिन नहीं जी पाऊंगा । मेरा शरीर खोखला हो गया है। मेरी अंतिम इच्छा है बच्चों को ठीक से रखना मेरा पेंशन लगभग साढ़े पाँच हजार रुपये माह बार एवं जमा राशि बीमा,जी.पी.एफ. ग्रेज्युटी राशि लगभग सात लाख रुपये मिल जायेंगे । तुम्हारा गुजारा चल जाएगा । सुमित्रा ने बोली कि तुम तो अपनी अंतिम इच्छा को बता दिये । मेरी अंतिम इच्छा है कि मैं आपसे पहले मरूं और मेरी मृत्यु हो तो मेरी लाश को अपने कंधे में लादकर मुक्ति धाम में क्रिया कर्म अपने हाथों से कर देना। मैं बहुत सुख भोग चुकी हूँ । मुझे जीवन में सब कुछ मिल चुका है। भारतीय नारी की अंतिम इच्छा होती है कि पति के हाथों में दाह संस्कार हो । यही मोक्ष मार्ग है । शर्मा जी सुमित्र के गले से लगा लिया । आँखों से आंसू बहने लगे । वाह भारतीय नारी तेरी जय हो तुम धन्य हो, महान हो ।
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