Saturday, September 09, 2006

तेरही भीज


शारदा बाल ग्राम की पहाड़ी पर मंद पवन के झोके पुरवाई सी बह रही थी। पूर्व में सूरज देव की लालिमा से मनोहारी दृश्य दिख रहा था। लाल गेंद के समान सूर्य उदय हो रहा था। पहाड़ी के ऊपर मैदान में घास के ऊपर बैठकर योगाभ्यास कर सभी सुबह भ्रमण करने वाले साथी श्री एस. पी. रिछारिया, डॉ. सुखदेव सक्सेना, डॉ. जयसिंह सोनी, ओमप्रकाश दुबे, आर. के गोयल, स्वरूप सिंह, श्री रामप्रसाद लिटोरिया, आर. के .शर्मा, जन्डेलसिंह तोमर गप्पे मारकर हँसी मजाक कर रहे थे । पंडित रिछारिया की खीर पूड़ी की तारीफ हो रही थी। बहुत बढ़िया खीर पूड़ी नही थी। छक कर खाये थे।

स्वरूप सिंह ने कहा कि आप लोग तो खीर खाये मेरी मुंह में पानी आ गया। मैं कल गोठ में विलंब से पहुँचा। पंडित रिछारिया के खीर को आसानी से नहीं पचा पाओगे । सभी लोग जोर से ठहाके लगाकर हँसे । हँसी से पहाड़ी गूंज उठी । सूरज की लालिमा से सभी के चिहरे चमक रही थी। स्वरूप सिंह ने बड़े भावुक होकर कहा डॉ. सक्सेना मैं सोचता हूँ कि अपनी तेरही भोज जीते जी करना चाहता हूँ । मेरी अंतिम इच्छा है। डॉ. सक्सेना ने सभी लोगों को अंतिम इच्छा सुनाई सभी लोगों ने बड़े आश्चर्य से सुना। पंडित रिछारिया ने कहा ठीक है डॉ. सक्सेना । हम लोग तेरही भोज खाने के लिये तैयार हैं। डॉ. सक्सेना स्वरूप सिंह जी की तिरही भोज का आमंत्रण सभी लोगों की ओर से स्वीकार कर लिया ।

प्रतिदिन सुबह बाल ग्राम के पहाड़ी में तेरही की चर्चा होने लगी । स्वरूप सिंह ने पेंशन राशी मिलने पर आठ तारीख को भोज देने के लिए तारीख निश्चित की गई । पहाड़ी के ऊपर गोल गोलम्बर में भोज की तैयारी चल रही थी। सभी साथी मिलकर पकाने के लिये सामग्री तैयार कर रहे थे। वीरेन्द्र कुमार जी ने दर्पण कालोनी से एक नाई पकड़कर ले आये । स्वरूप सिंह से कहाँ पहले सिर का बाल साफ कराकर मुडंन कराईये । सभी साथियों ने बारी-बारी से मुण्डन कराये । पास के टंकी में जाकर स्नान किये । सभी लोगों को पंडित रिछारिया ने गंगा जल छिड़ककर पवित्र किये । सभीलोगों ने मिलकर जीवित आत्मा की आत्मा की शांति के लिय सुन्दरकांड की पाठ किये । स्वरूप सिंह उस दिन गंभीर हो गये थे। भाव बिभोर होकर, ठहाके लगाकर हँस पड़े । उनके आँखों से आँसू झर-झर बहने लगे । बड़ा गमगीन स्थिति बन गई । कहाँ हँसी मजाक मनोरंजन हेतु कार्यक्रम रखा गया था। बड़े भावुक होकर स्वरूप सिंह जी बोले कि मेरे सुपुत्र नहीं हैं । आठ कन्याओं ने सेसे घर जन्म लिये । सात पुत्रियों का विवाह कर दिया हूँ । एक पुत्री बची है इसका भी विवाह मेरे दामाद लोग कर देंगे । इसके बाद मैं मर जाऊंगा । स्वयं जाने से पहले मैं तेरही भोज देना चाहता था। जो मेरी इच्छा आज पूरी हो रही है। गरीब बच्चों को माल पुआ, खीर लड्डू खिलाये गये । तेरह ब्रह्मणों को सबसे पहले भोज कराये । सभी लोगों को इक्यावन रुपये, एक गमछा देकर ब्रह्मणों का आशीर्वाद लिये । सभी लोग छक कर खाये । ओम का डकार लेते हुए पेट में हाथ फेरते हुये चले गये । बहुत दिन के बाद पंडित दीनानाथ के सुस्वाद भोजन मिला था।

इसके बाद सभी साथी एक साथ बैठकर पंगत में भोजन ग्रहण किये, जमकर आये । मालपुआ की खूब तारीफ किये । स्वरूप सिंह की चेहरे में चमक बढ़ गई थी। आभी पण्डल दमक रहाथा । स्वरूप सिंह ने कहा कि हमने परंपरा कोतोड़कर जीते जी अपनी तिरही कर डाली । स्वर्गीय होने से पूर्व अपनी आँखों के सामने तेरही भोज करा दिया । मेरी आत्मा को अपार शांति मिल रही है । रो – रोकर आस पड़ोश को इकट्ठा कर ली है । बड़ा तमाशा हो रहा हैं । सभी सुबह घूमने वालों को गाली दे रही हैं । सत्यानाश हो कह रही हैं । सभी लोग हतप्रभ रह गये । सभी महिलाओं को लेकर पहाड़ी की ओर आ रहे हैं। स्वरूप सिंह ने कहा-मित्रों डरने की बात नहीं है । मैं तो रोजाना डंडा खाता हूँ आज आप लोग भी खा लिजिये । डॉ. सक्सेना ने दूर जाकर देखा दस बारह महिलायें लाठी लिये पहाड़ी चढ़ रही हैं । सक्सेना नेकहा-भागो साथियों अपने-अपने सामान लेकर सभी पहाड़ियोंसे ओझल हो गये । सभीमित्रों को तेरही भोज की याद आते ही ठहाकों की गूंज से पहाड़ी गुंजायमान हो जाती है ।
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प्रस्तुतिः सृजन-सम्मान, छत्तीसगढ़


1 comment:

Ashish (Ashu) said...

तेरही भोज किसलिये किया जाता है, शोक में भोज?