Saturday, September 09, 2006

अंतिम इच्छा


प्रेम प्रकाश शर्मा जी प्रथम श्रेणी अधिकारी ग्वालियर के मोती महल में पदस्थ थे । सेवा निवृत्त के लिये चार वर्ष बाकी थे। दो वर्ष सरकार के मर्सी पर बढ़ गया था । शर्मा जी अपने काम ईमानदारी, लगन, मेहनत से समय से पूर्व कर देते थे। टेबल में कोई कागज नहीं रखते थे। जैसे चपरासी रामदीन टेबव में नस्तियों को रखता दस मिलट में सभी फाइलों का निराकरण कर देता था। शर्मा जी बत्तीस साल सेवा कर चुके थे। शे ष सेवा को अच्छे ढंग से बीत जाये यही प्रार्थना ईश्वर से करते हैं ।
शर्मा जी को मधुमेह की रोग हो गया था। समय ते अनुसार भोजन नाश्ता करते थे । खाना खाने से पूर्व नियमित रूप से गोलियाँ का सेवन तरते थे । प्रेम प्रकाश की पत्नी सुमित्र बहुत सेवा करती थी। बड़ी भली महिला थी। बच्चों की विवाह कर मातृ पितृ ऋण से मुक्त हो गये थे । शर्मा जी को बीमारी ने उम्र से पहले वृद्ध बना दिये थे। प्रातः सुबह उठकर पाँच मील पैदल चलते थे। इसलिये राजरोग अटेक नहीं कर पाते थे। सुमित्र प्रतिदिन टेबलेट खाने के लिये ध्यान रखती थी।

एक दिन शर्मा जी के राजरोग में थोड़ी सी वृद्धि हो गई । आफिस वे 6 बजे हांफते हुये आये। सुमित्र ने देखकर कहाँ क्या हो गया । जल्दी से प्रीज से एक बोतल ठंडा पानी निकालकर गिलास में दी एक सांस में पानी पी गया। शर्मा जी की पत्नी सुमित्रा से कहा कि मैं ज्यादा दिन नहीं जी पाऊंगा । मेरा शरीर खोखला हो गया है। मेरी अंतिम इच्छा है बच्चों को ठीक से रखना मेरा पेंशन लगभग साढ़े पाँच हजार रुपये माह बार एवं जमा राशि बीमा,जी.पी.एफ. ग्रेज्युटी राशि लगभग सात लाख रुपये मिल जायेंगे । तुम्हारा गुजारा चल जाएगा । सुमित्रा ने बोली कि तुम तो अपनी अंतिम इच्छा को बता दिये । मेरी अंतिम इच्छा है कि मैं आपसे पहले मरूं और मेरी मृत्यु हो तो मेरी लाश को अपने कंधे में लादकर मुक्ति धाम में क्रिया कर्म अपने हाथों से कर देना। मैं बहुत सुख भोग चुकी हूँ । मुझे जीवन में सब कुछ मिल चुका है। भारतीय नारी की अंतिम इच्छा होती है कि पति के हाथों में दाह संस्कार हो । यही मोक्ष मार्ग है । शर्मा जी सुमित्र के गले से लगा लिया । आँखों से आंसू बहने लगे । वाह भारतीय नारी तेरी जय हो तुम धन्य हो, महान हो ।
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