Saturday, September 09, 2006

कंजूसी का कड़वा फल


प्रतिदिन की तरह आज भी संतोष कुमार “साधी बिजली की दुकान पर गोल बाजार” में बैठा रहा। वह अपने लड़कों को बिजनेश की गुर सिखाता रहा। बच्चे हाँ में सिर हिला रहे थे। दुकान की साख अच्छी जम गई थी। सांधी जी को डिप्टी कलेक्टरी से सेवानिवृत्त हुये पाँच वर्ष बीत चुके थे। वे इधऱ-उधऱ गप मारकर दिन बिताते थे। साधी जी जीवन भर मुफ्त का माल उड़ाते रहे । सेवानवृत्ति के बाद भी लुफ्त उठाते रहते थे । कभी किसी अधिकारी को फोन करके जीप गाड़ी मंगा लेते थे। अपनी ख़ुद की मारूति कार घर पर ही थी।
संध्या सात बजे सांधी जी अपने पुत्र सत्यप्रकाश को स्कूटर से घर छोड़ने को कहा । जब गांधी रोड के पास पहुँचे ही थे स्कूटर का एक टायर पंचर हो गया । सांधी जी वहीं खड़े होकर कोई पहचान गाड़ी वालों को देखने लगे उस दिन कोई नहीं मिले । उसी समय रामकृष्ण शर्मा, लूना से अपने घर दर्पण कालोनी जा रहे थे । सांधी जी ने आवाज दी शर्मा जी रुक गए ।

सांधी जी ने कहा हमें भी घर तक छोड़ दो । शर्मा जी ने मना किया कि लूना नहीं खींच पाएगा। सांधी जी ने पैसा बचाने के लिए लूना के पीछे में बैठ गया । भारी भरकम शरीर होने के कारण लूना ऊपर उठ जाती थी। शर्मा जी धीरे-धीरे चले रहे थे । रामकृष्ण मंदिर के पास गति अवरोधक को पार करने के लिए जैसे ही लूना को चढ़ाया, रोड ब्रेकर ऊँचा होने के कारण लूना के पहिया ऊपर उठ गया और पीछे बैठे सांधी जी धड़ाम से गिर पड़े । पैर टूट गया। शर्मा जी ने सांधी जी को उठाया । पैर के दर्द से कराह रहे थे । शर्मा जी पुनः लूना में बिठाकर घर छोड़कर चला गया । सांधी जी के पैर में सूजन आ गया। पत्नी सावित्री ने तपाक से कहा । अच्छा हुआ बहुत कंजूसी करते हो । दस रुपए आटो खर्च बचाने के लिए पैर तुड़वा आए अब पांच हजार रुए खर्च करो । सांधी जी के कंजूसी ने पांच माह तक बिस्तर पर पड़े रहने को पजबूर किया पैर अभी भी ठीक नहीं हुआ है । उपर से पत्नी सावित्री उन्हें कोसती रहती हैं, सो अलग ।
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प्रस्तुतिः सृजन-सम्मान, छत्तीसगढ़


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