Saturday, September 09, 2006

डाँट




एक बड़े अधिकारी हमेशा अपने अधीनस्थ अधिकारी-कर्मचारियों को बात-बात में डांटा करते थे, चाहे गलती हो या न हो । इसका असर पूरे विभाग पर इस तरह पड़ता था कि काम समय से पहले हो जाता था ।

एक दिन बड़े अधिकारी ने छोटे अधिकारी को उनके निवास पर फोन से डांट दिया कि तत्काल अभी आफिस आओ और काम करके दिखाओ । पत्नी सब सुन रही थी । पत्नी के सामने डांट खाने पर बहुत बुरा लगा ।

वे भनभनाते हुये आफिस जा पहुंचे । बंद होने को आ गया था । कुर्सी में बैठने से पहले कुर्सी को जोर से धक्का मारकर पटका और जोर जोर से चिल्लाने लगे-

“आप लोग कोई काम नहीं करते, डांट मुझको खानी पड़ती है । 20 साल की नौकरी में आज पहली बार साहब से डांट खानी पड़ी, वह भी पत्नी के सामने ।“

अपने मातहत अधिकारियों पर एक-एककर गुस्सा उतारने के बाद घंटी पर भी अपनी गुस्सा उतार दिये । घंटी पी-पी कर बजने लगी । चपरासी सामने आकर खड़ा हो गया । चपरासी समझ गया कि साहब क्रोध में है, शीघ्र ही ठंडा पानी लेकर आया और टेबल पर रख कर चला गया ।
डांट का चक्रीय सिलसिला कुछ इस तरह चला कि बड़े अधिकारी ने छोटे अधिकारी को डांटा, छोटे अधिकारी ने कर्मचारी को, कर्मचारी ने चपरासी को और चपरासी ने डांट का असर तीन कांच के गिलास को पटक कर किया, तब जाकर कहीं डांट का यह क्रम बंद हुआ ।

बड़े अधिकारी ने क्रोध शांत होने के बाद सभी छोटे अधिकारियों को अपने कमरे में बुलाया और चाय पीते-पीते बताये कि घर में पत्नी डांट रही थी, उसी समय बास ने फोन पर डांट दिया उसका असर आप लोगों पर उतर गया । सभी अधिकारियों ने खींसे निपोरते हुए कहा, “कोई बात नहीं सर चलता है ।“


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प्रस्तुतिः सृजन-सम्मान, छत्तीसगढ़



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